वैसे तो आप अगर अपने विकराल रूप पर आ जाए तो सब कुछ बर्बाद कर देती है। लेकिन वह खुद नहीं करती किसी न किसी कारण से या किसी की लापरवाही से वह अपने विकराल रूप को धारण करती है। और कईयों की जिंदगियां बर्बाद कर देती है।
ऐसे ही इस आग की लपटों में भी धधक रहे है किसी के सपने,,, आखिर कौन है उसके आंसुओ के जिम्मेदार है।
"Tata motors" कंपनी,डीलर, सर्विस सेंटर, और वह का स्टाप जिन्होंने एक गरीब ड्राइवर गोपाल राजपूत की एक ना सुनी और आखिर कर वह हो ही गया जिसका अंदेशा यह बदनसीब जता रहा था।
लेकिन शोरूम और सर्विस सेंटर वालो के कान पर झु तक नहीं रेंगी। आखिर A/c ऑफिसो में बैठने वाला स्टाप और अधिकारी वर्ग कहा इस गरीब ड्राइवर की सुनने वाले थे।
पूरी कहानी इस प्रकार है।
गुनाह यह था कि 10_15 हजार की प्राइवेट नौकरी करने वाले गोपाल के मन में थोड़ा ज्यादा पैसा कमाने का मन बनाया और अपने सपने को टाटा के साथ जोड़ा।
फिर उसने अपनी थोड़ी बहुत सेविंग और रिश्तेदारों से उधारी के दम पर टाटा मोटर्स की एक गाड़ी खरीदी अपने रिश्तेदार राहुल सोलंकी के नाम से टाटा की गाडी फाइनेंस करवा ली। और पूरी लगन से उसको चलाने लगा लेकिन कुछ ही दिनों में उसको लगने लगा कि गाड़ी में कुछ टेक्निकल समस्या है।
जिसकी शिकायत लेकर वह सर्विस सेंटर गया। सर्विस सेंटर वालों ने फौरी तौर पर उस समस्या को ठीक कर दिया। लेकिन वह समस्या बार-बार आने पर वह उसे दिलासा देते रहे। गाड़ी को फौरी तौर पर सर्विस सेंटर वाले ठीक कर देते और गोपाल फिर काम पर निकल जाता।
हालांकि उसके मन में अंदेसा और डर तो बना ही रहता की गाड़ी कब कहीं जंगल मैं ना खड़ी हो जाए। लेकिन कंपनी वालों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था।
ऐसा ही हादसा एक बार उसके साथ हुआ उसकी गाड़ी जंगल में रात के समय खराब हो गई वह अकेला फंस चुका था। रात भर उसने जंगल में बिना कुछ खाए पिए काटी। सुबह जैसे तैसे ट्रोल करके गाड़ी को सर्विस सेंटर इंदौर लेकर आया।
लेकिन कंपनी वालों का रवैया वैसे ही लापरवाह की तरह बना रहा और गाड़ी का इंजन बदलने की दिलासा देते रहे। कई कई दिन गाड़ी सर्विस सेंटर पर खड़ी रही।
गोपाल इस बीच बहुत परेशान हो चुका था क्योंकि करोना का लॉकडाउन वह पहले ही भारी मुसीबतों के साथ झेल चुका था और अब तक तो वह आर्थिक तौर पर भी बहुत कमजोर हो चुका था
क्योंकि फाइनेंस कंपनी की किस्ते तो लगातार चालू थी घर खर्च चालू था किराए के मकान में रहता था उसका भी रेंट चढ़ चुका था और इधर गाड़ी भी नहीं चल रही थी तो पैसा आता तो कहां से आता
अब तक सभी रिश्तेदारों से वह उधार ले चुका था । इसलिए अब कोई मदद करने को भी तैयार नहीं था। इन्हीं सब उलझनों के बीच वह कही बार उसके मन में आत्महत्या के बारे में भी विचार आ चुका था। यह बात वह अपने कुछ वीडियो में भी कह रहा है।
लेकिन कंपनी वाले फाइनेंस वाले कहां उसकी सुनने वाले थे। इन सब समस्याओं को झेल कर भी वह यह सोच कर खड़ा हो जाता कि सब ठीक हो जाएगा।
आखिर कई दिनों के लंबे इंतजार के बाद सर्विस सेंटर वालों ने उसको गाड़ी दे ही दी। लेकिन उसके बाद भी गाड़ी आए दिन सर्विस सेंटर पर जाते ही रहे। गाड़ी से उसे कभी संतुष्टि नहीं मिली हर बार वह सर्विस सेंटर वालों को बताता अपनी समस्या और सर्विस सेंटर वाले उसे दिलासा दिला कर फ्री हो जाते हैं।
लेकिन गाड़ी में कुछ ना कुछ समस्या चलती ही रहती। इस सब में उसका काम का भारी नुकसान हो रहा था। कंपनी के इस व्यवहार से वह काफी दुखी था। लेकिन उसकी मुसीबतें यहीं खत्म होने वाली नहीं थी।
20 नवंबर की रात को वह भाड़ा छोड़ कर वापस घर लौट रहा था तब ही अचानक उसकी गाड़ी मैं कई से फाल्ट हुआ और चिंगारी ने पलक झपकते ही आग पकड़ ली, गोपाल जैसे तेसे अपनी जान बचाकर गाड़ी से बाहर कुदा और अपनी जान बचा ली
लेकिन उसके सामने उसकी अरमानों की अर्थी निकल चुकी थी उसकी गाड़ी धू-धू कर जल रही थी। वह असहाय की तरह कुछ नहीं कर पा रहा था। अब उसके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा है।
इसमें सबसे ज्यादा दोस वह टाटा कंपनी और डीलर को देता है। क्योंकि गोपाल इनको बार-बार सूचित करता था लेकिन यह लोगों ने गाड़ी पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जिससे एक बड़ा हादसा हो गया।
किसी के सपने जलकर राख हो गए। यह तो ईश्वर की कृपा रही कि कोई जनहानि नहीं हुई।