बसंत पंचमी पर विशेष आओ मनाए बसंत महोत्सव,

बसंत पंचमी वाग्देवी मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मानया जाता है।Photo social media  हिंदू समाज में बसंत पंचमी पर्व का विशेष महत्व है. इस पर्व पर केवल बच्चे ही नहीं अपितु संगीत व साहित्य के महान साधक भी बड़े हर्षोल्लास के साथ आनंद दायिनी मां की पूजा में शामिल होते हैं. संगीत के साधक राग वसंत तथा बहार गाते हैं तथा अपनी संगीत व साहित्य की साधना को मां के चरणों में समर्पित करते हैं। इस पर्व पर अनेक सुंदर पूजा स्थल सजाए जाते हैं, जो देखने में बड़े ही मनोहर लगते हैं इसके अतिरिक्त इस त्यौहार के आने पर हमारे जीवन को प्रकृति के द्वारा एक संदेश नवीन ऊर्जा, उत्साह के संचार का दिया जाता है। इस दिन आराधक शिक्षा की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना बड़ी श्रद्धा से करते हैं ,,,, उमंग तरंग में झूमती प्रकृति और ऊर्जा का संचार करता बसंतPhoto social media प्रेम के पर्व पर ज्ञान की देवी की आराधना केवल संयोग नहीं है। ज्ञान और विवेक के अभाव में उत्साह निरंकुश हो जाता है। यह पर्व जोश में होश का संकेत देता है। लेकिन सीमेंट कांक्रीट के जंगलों में तब्दील होते शहरों में वसंत का आना या ना आना एक सामान है, काम से लदी जिंदगी दिन-रात टारगेट में उलझी रहती है। उदास चेहरों और बुझे दिलों को न वसंत के आगमन का भान है और न प्रकृति से बतियाने का समय।
हम भले ही अपनी प्रकृति भूल जाएँ। तरक्की के जूनून में अपना स्वभाव खो दें। मगर प्रकृति ने अपना ढंग नहीं छोड़ा है। आज भी कहीं न कहीं, कोयल वैसे ही कूक रही है और टेसू खिल रहे हैं। हम ही जो इनसे नाता तोड़ बैठे हैं, तनावों को न्योता दे चुके हैं। प्रकृति की असीम कृपा से दूर जा रहे हैं! अब आवश्यकता है प्रकृति के तथस्ट आने की यू तो
बसंत पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ या ‘वसंत पंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है यह उत्सव पूरी दुनिया में पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है |


जिसमे की बसंत पंचमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार हर साल माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता है ! बसंत पंचमी के दिन ज्ञान, संगीत और कला की देवी माता सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है ! मौसम के अनुसार यह दिन सर्दी ऋतू के जाने का प्रतिक है


इस दिन पीले वस्त्र धारण करने की मान्यता है,
Photo social media यह उत्सव ॠतु परिवर्तन का त्यौहार भी है,बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। ये पूजा भारत में हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार माघ मास के पंचमी तिथि (पाँचवे दिन) को किया जाता है। ये पूजा हिन्दु धर्म एवं विद्यार्थीयों के लिए बहुत मायने रखती है। क्योंकि माता सरस्वती को विद्या-बुद्धि, कला और संगीत की देवी माना जाता है।
बसंत ॠतु को ॠतुओं का राजा कहा जाता है। इसके आते ही मौसम खुशनुमा हो जाता है। ठंढ़ का असर खत्म होने लगता है। इस दिन पीला रंग आकर्षण का केंद्र होता है,और पीली मिठाई बनाई जाती है। ये रंग माँ सरस्वती और सरसों की फसलों को समर्पित होता है। फल-फूल, फसलें खिल उठते हैं। पीले लहलहाते हुए सरसों के खेत से बसंतोत्सव की शोभा बढ़ जाती है। प्रकृति और समस्त जीव-जंतु में नवजीवन का संचार होता है। इस मौके पर लोग पतंगे उड़ाकर भी उत्सव का आनंन्द लेते हैं। इस मौसम में हर मौसम का आंनद लिया जाता है, यह प्रकृति प्रेमियों का प्रिय है!


हिंदू धर्म में बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया का शुभारंभ इसी दिन पहला अक्षर लिखवा कर किया जाता है!Photo social media सभी विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में इस दिन सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। गली-मुहल्लो में पूजा के पंड़ाल बनाए जाते हैं। सरस्वती माता की मूर्ति स्थापित की जाती है। शिक्षक विद्यार्थी और सभी लोग श्रद्धा पूर्वक माता सरस्वती की आराधना करते हैं। पूजा में किताब-कॉपी पेन-पेंसिल पढ़ने लिखने की सारी सामाग्री को माता के चरणों में रखकर आर्शिवाद लेते हैं। और विद्या-बुद्धि की मनोकामना करते हैं। विद्यार्थी उपवास रखकर पूजा से निवृत होने के पश्चात ही प्रसाद ग्रहण कर के भोजन करते हैं। लोग पूजा पंड़ालों के भ्रमण करते हुए प्रसाद लेते हैं। बच्चों में खासकर उत्साह नजर आता है। कुछ स्थानों में संध्या में बच्चे मनोरंजन के इंतजाम करते हैं। वाद-विवाद, संगीत-नृत्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इसके दूसरे दिन मूर्ति की पूजा कर उसे जल में प्रवाहित कर एक दिवसीय इस उत्सव का समापन किया जाता है।


खुशहाली का संदेश देती लहलहाती फसलेPhotos of India सरस्वती पूजा में आज उत्सव का स्थान आडम्बर ने ले लिया है। लोग उच्च ध्वनि में गाने बजाया करते हैं। फिल्मी गाने लगाए जाते हैं।
बसंत पंचमी बहुत ही खास पर्व है। सरस्वती पूजा बहुत ही पवित्र आयोजन है। एैसे में शोर-शराबे इस त्यौहार की गरिमा को खण्डित करते हैं। 
यह दिन सादगी और श्रद्धा से मनाना चाहिए। मनोरंजन के कई तरीके हैं। जरूरी नहीं की लाऊड स्पीकर में ऊच्ची आवाज में फिल्मी-गानो और नाच से मजे किए जाएँ। सांस्कृतिक, वाद-विवाद जैसे कार्यक्रमों से नयी पीढ़ी को शिक्षा प्राप्त होती है। सभी बड़े-बुजुर्गों सहित इसके आनंद ले पाते हैं। ये दिन शिक्षा को समर्पित होता है। इस उत्सव का मान रखना समाज और हमारी जिम्मेदारी बनती है। जिससे ये शांति और गरिमापूर्वक सम्पन्न हो सके।


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