हिंदुस्तान की रगों में फैलता जहर से भी ज्यादा विषैला: वामपंथ

हिंदुस्तान की रगों में फैलता जहर से भी ज्यादा विषैला वामपंथ....हिंदुस्तान में हिंदुस्तान के खिलाफ ही लगातार जहर उगलता वामपंथवामपंथ की सबसे बड़ी ताकत यह है की लोगों को वामपंथ दिखाई नहीं देता जिन्हें दिखाई भी देता है! उन्हें भी इसकी नियत दिखाई नहीं देती!...


आंदोलन के नाम पर देश में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चलाने का कार्य जिनमें तिरंगे का अपमान करना, लोकतंत्र व्यवस्था को उखाड़ने का प्रयास तथा राष्ट्रद्रोही याकूब मेनन जैसे लोगों का समर्थन करना वामपंथियों का ध्येय बन गया है। इन वामपंथियों ने याकूब की फांसी का विरोध ही नही किया,


हिंदू और हिंदुस्तान से नफरत भरी विचारधारा है वामपंथ


• यह हर देशभक्त और हिन्दू मान्यता को गाली देते हैं।


• भारत चीन युद्ध के समय भी वामपंथ की जहरीली विचार धारा ने जख्मों पर नमक का काम किया था!


यह वही वामपंथी हैं जो बाबा पशुपतिनाथ मंदिर पर हुए माओवादी हमले का समर्थन कर रहे थे!


• और ऐसे कहीं अनगिनत मौको पर वामपंथी  विचारधारा ने अपना जहर उगला है!



अभाव के प्रभाव में नासूर बनता वामपंथ का जहर


गरीबी,अशिक्षा, राष्ट्रवाद के विचारो की शून्यता यही वह हथियार है जिनकी मदद से वामपंथी....समाजवाद को राष्ट्रवाद के सामने खड़ा कर अपनी जहर से भी ज्यादा जहरीली वामपंथी विचारधारा को फैलाते हैं !


आज की युवा पीढ़ी को इस विचारधारा को समझना अत्यंत आवश्यक है, किसी भी देश में नौजवान देश के विकास की धुरी होते है, उनकी समझ, लगन, विचार ही किसी भी देश को महान  बनाते हैं, देश में अभी खूब लेफ्ट राइट चल रहा है, चाहे केरला, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, बिहार, पूरे देश में, वामपंथी विचारधारा प्रखर हो रही है,


वामपंथ से बढ़कर हिंसक विचार दूसरा कोई और नहीं है। वामपंथी विचार घोर असहिष्णु है!


केरल में बढ़ती हिंसा इस बात का सबूत है कि वामपंथ से बढ़कर हिंसक विचार दूसरा कोई और नहीं है। वामपंथी विचार घोर असहिष्णु है। असहिष्णुता इस कदर है कि वामपंथ को दूसरे विचार स्वीकार्य नहीं है, अपितु उसे अन्य विचारों का जीवत रहना भी बर्दाश्त नहीं है। इस विचारधारा ने देश और दुनिया में हजारों-लाखों निर्दोष लोगों का खून बहाकर उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।जिस वामपंथी नेता ने विरोधियों का जितना रक्त बहाया, उसे उतना ही अधिक महत्त्व दिया गया है। दरअसल, वामपंथी विचारधारा के मूल में हिंसा है, जिसका प्रकटीकरण वामपंथ को मानने वालों के व्यवहार में होता है। तानाशाह प्रवृत्ति की इस विचारधारा ने भारत में मजबूरी में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार किया है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी आस्था दिखाई नहीं देती है। भारत के जिस हिस्से में यह विचार ताकत में आया, वहाँ हिंसा और तानाशाही का नंगा नाच खेला गया। केरल के वर्तमान हालात इस बात के प्रमाण है!


केरल के जंगलराज पर यह खामोशी बताती है कि इस देश का बौद्धिक धड़ा दोगला है।


केरल में वामपंथी विचारधारा से शिक्षित कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता और नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से संबंध रखने वाले निर्दोष लोगों को अपनी हिंसा का शिकार बना रहे हैं। राष्ट्रवादी विचार के प्रति आस्था रखने वाले परिवारों और व्यक्तियों को बेरहमी से मौत के घाट उतारा जा रहा है। यहाँ तक कि मासूम बच्चों और महिलाओं के प्रति भी कम्युनिस्ट पार्टी के लोग राक्षसों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। कोझीकोड की घटना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आत्मा को रुला दे। दिसंबर में राष्ट्रवादी विचार से संबंध रखने वाले एक समूचे परिवार को आग के हवाले कर दिया गया। उस परिवार को घर में बंद करके बाहर से आग लगा दी।
इस हादसे में भाजपा की मंडल कार्यकारिणी के सदस्य 44 वर्षीय चादयांकलायिल राधाकृष्णन, उनके भाई और भाभी की मौत हो गई।इससे पूर्व केरल में ही एक परिवार कार से कहीं जा रहा था। वह परिवार भी संघ का स्वयंसेवक परिवार था। उनकी गाड़ी को वामपंथी विचार के लोगों ने रोका और उनके दस महीने के बच्चे को पैरों से पकड़ कर गाड़ी से खींचा और सड़क पर फेंक दिया। और ऐसे कहीं उदाहरण भरे पड़े हैं इस नफरत से भरी हुई विचारधारा के
 
बुद्ध और गांधी के देश में  इस वैचारिक हिंसा पर राष्ट्रीय मीडिया और बुद्धिजीवियों की खामोशी निंदनीय और चिंताजनक है!


वामपंथी विचारधारा के कार्यकर्ताओं की इस पशुता पर देश का राष्ट्रीय मीडिया खामोश है, क्यों? असहिष्णुता का बवंडर खड़ा करने वाले तथाकथित प्रगतिशील भी चुप्पी साध कर बैठे हुए हैं ? क्या यह हत्याएं सहिष्णुता की श्रेणी में आती हैं ?  क्या इन घटनाओं का विरोध नहीं किया जाना चाहिए? क्या इन घटनाओं पर इसलिए चुप्पी साधकर रखी गई है, क्योंकि इन घटनाओं में कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों की संलिप्तता है ? केरल में आए जंगलराज पर यह खामोशी बताती है, कि इस देश का बौद्धिक धड़ा दोगला है।


अराजकता वामपंथ के लिए सत्ता पर कब्जा करने की जरूरी शर्त है!


भारत में वामपंथी हर तरफ फैले हुए है, कई वामपंथी राजनितिक दल है, ये लोग छात्रों के रूप में भी कॉलेज यूनिवर्सिटी में घुसे हुए है। ये वामपंथी मीडिया में है, साथ ही साथ ये लेखकों में भी है, ये फिल्म इंडस्ट्री में भी घुसे हुए हैं और ये जितने भी वामपंथी है, उन सभी की विचारधारा भी एक सामान है


छोटे शब्दों में "भारत और हिन्दू विरोध"।


यह दुर्भाग्य की बात है की देश के अधिकांश शिक्षण संस्थान और मीडिया पुरी तरह इन गद्दार वामपंथियों की जकड़ में हैं जिसके कारण छात्र छात्राएँ भी दिग्भ्रमित होकर आतंकवादियों अलगावादियों नक्सलियों और वामपंथियों के समर्थक बन देश से गद्दारी करने लगे हैं। इन संस्थानों को इन गद्दारों से मुक्त कराए बगैर देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता अन्यथा इन संस्थानों में उपस्थित कन्हैया, खालिद, अनिर्बान जैसे वामपंथी इन्हीं संस्थानों में बैठकर सैनिकों की शहादत पर जश्न मनाते है, आतंकवादियों की मौत पर उनके लिए शोकसभा करेंगे, दुर्गापूजा के समय महिषासुर की पूजा करेंगे। बीफ-पार्टी मनाएँगे, हिन्दू देवी देवताओं की खिल्ली उड़ाएँगे, खुलेआम भारत विरोधी बातें करेंगे और सब कुछ ढर्रे पर चलता रहेगा।
हम क्या चाहें आजादी, हक हमारा आजादी। कहकर लेंगे आजादी, कश्मीर मांगे आजादी। केरल मांगे आजादी। बस्तर मांगे आजादी।


अर्बन नक्सलवाद काल्पनिक कहानी नहीं है, यह अब सबको पता चल रहा है!


इस विचारधारा के सबसे बड़े अनुयायी शहरों में हैं! जिनको अर्बन नक्सल के नाम से भी जाना जाता है!रुलर नक्सल वाद इसी विचार धारा की देन है, और कुछ राजनीतिक दल भी हैं, इनके अलावा  हिंदुस्तान में ऐसे कई लोग हैं जो अज्ञानतावश इस कॉकटेल के नशे में झूमते रहते हैं,  पेंडुलम की तरह झूलते रहते हैं. ये वैचारिक कंगाल लोग कभी सामाजिक न्याय और संप्रदायिकता से लड़ने वाले लड़ाकू बन जाते हैं तो कभी प्रजातंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन में शामिल हो जाते हैं तो कभी पर्यावरण को बचाने के लिए पदयात्रा शुरु कर देते हैं, तो कभी मानवाधिकार के लिए आंदोलन करते नजर आते हैं.


समाजवाद की आड़ में नफरत की खेती करता : वामपंथ


वामपंथियों के बारे में समझने वाली बात बस इतनी सी है कि ये विपक्ष में रहते हुए अधिकार, प्रजातंत्र और आजादी जैसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आंदोलन करतें है वही सत्ता में आने के बाद सबसे बड़े दमनकारी साबित होते हैं. यही उनकी चाल, चरित्र और चेहरे की हकीकत है.


इस नफरत से भरी विचारधारा का अंत जरूरी है!


चूंकि कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद पराजित हो चुका है! इसलिए हमारे कम्युनिस्टों ने अपनी बची-खुची शक्ति ईसाई एवं इस्लामी साम्राज्यवाद को मदद पहुंचाने एवं हिन्दू धर्म के विरोध में लगा दी है। कम से कम इससे उन्हें अपने शत्रु 'हिन्दुत्व को कमजोर करने का सुख तो मिलता है।इसीलिए भारतीय वामपंथ हर उस झूठ-सच पर कर्कश शोर मचाता है जिससे हिन्दू बदनाम हो सकें।


एक समय ऐसा भी था! लेकिन अब सरकार पूरी तरह सतर्क
एक समय यह भी था , वाराणसी के मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला था वामपंथ भारत की सांस्कृतिक राजधानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी 1967 के कालखंड में वामपंथी विचारधारा की चपेट में था! वामपंथ अपने जहरीले विचारो और सरकारों की सतर्कता से अब धीरे-धीरे ही सही यह नफरत का साम्राज्य सिमटता जा रहा है ! भारत सरकार का यह मानना है, की विकास, गरीबी उन्मूलन और सुरक्षा संबंधी विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण से वामपंथी उग्रवाद की समस्या से सफलता पूर्वक निपटा जा सकता है!  #साभार गूगल/photo/ shaurya dhwaj, social media


 


 


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