धर्म शास्त्रों के अनुसार, माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार नर्मदा जयंती 1 फरवरी आज शनिवार को है,Photo social media जीवन दायनी नर्मदा नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।
Photo social media एक बार सभी देवताओं ने मिलकर अंधकासुर नाम के राक्षस का वध किया। राक्षस का वध करने के दौरान देवताओं से बहुत से पाप भी हुए। इसलिए सभी देवता ब्रम्हा जी और विष्णु को लेकर महादेव के पास गए। उस समय भगवान शिव तपस्या में लीन थे। सभी देवताओं ने उनसे विनती की, कि 'हे कैलाशपति राक्षसों का वध करते हुए हमसे बहुत पाप हुए है। हमको उन सभी पापों से छुटकारे के लिए कोई रास्ता दिखलाइए।' देवताओं की विनती सुनकर भोलेनाथ ने अपनी आँखें खोली और एक प्रकाशमय बिंदु धरती पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिराया। इस प्रकाशमय बिंदु से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। कन्या बहुत रुपवान थी। भगवान ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा। इस तरह नर्मदा नदी को भगवान शिव ने पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया।
नर्मदा ने की शिव उपासना photo song video
Photo social media साथ ही नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की। भोलेनाथ मां नर्मदा की तपस्या से प्रसन्न हुए और ऐसे वरदान प्राप्त किए, जो किसी भी नदी के पास नहीं थे। नर्मदा ने कहा कि मेरा नाश प्रलय आ जाए तो भी न हो। मैं पापों का नाश करने वाली धरती की एकमात्र नदी रहूं। मेरा हर पत्थर बगैर प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये और मेरे किनारों पर सभी देवताओं का वास हो। यही कारण है नर्मदा नदी सदानिरा है और इसके पत्थर नर्मदेश्वर शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं। नर्मदा पर सभी देवताओं का वास माना जाता है और इसके दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।
माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्नसमये राम भास्करेण कृमागते॥
माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।
यहां से शुरू होती है जीवनदायिनी मां नर्मदा की यात्रा
अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है। विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्य प्रदेश में यह प्रवाहित होती है। नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टाओं को निर्माण नही करती। इसकी कई सहायक नदियां भी हैं।
धर्म ग्रंथों में भी मिलता है इस नदी का वर्णन
स्कंद पुराण के अनुसार, नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।