जंगल की वह सच्चाई जिसे जानना हम सब के लिए बेहद जरूरी है, वरना एक दिन कहना पड़ेगा "एक था जंगल"

खबर,,,,जंगल के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है आज ही हम ऑक्सीजन की कमी महसूस करने लगे हैं ! ऐसे में आने वाली पीढ़ियों का भविष्य क्या होगा जंगल की वह सच्चाई जिसे जानना आज हम सबके लिए बहुत जरूरी है,ऊपर से यह अंधाधुन कटते जंगल,,,,


नीचे सच्चाई के सेंसेक्स में देखें पूरी खबर,,,


पट्टे की जमीन हासिल करने के लिए ग्रामीण इन दिनों जंगल की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।  वन अधिकार का फायदा उठाकर ग्रामीण वन क्षेत्र में वर्षों से खेती करने वाले बताकर जमीन पर अपना दावा करने में लगे हैं।  इधर, प्रशासन और वन विभाग के आवेदन का भौतिक सत्यापन बिना जमीन आवंटित किए जा रहे हैं।  राजनीतिक दबाव में अधिकारी महज खानापूर्ति कर आवेदन की स्क्रूटनी कर रहे हैं।


  नियमानुसार वर्ष 2005 के पहले से रह रहे लोगों को पट्टे देने का प्रावधान है।   वन अधिकार पत्र के तहत प्रदेशभर में वनग्राम के लोगों को पट्टे की जमीन  के आवंटन की प्रक्रिया चल रही है।  इंदौर वनमंडल में 1400 आवेदन आए और मानपुर में ग्रामीणों ने 2005 से जंगल की जमीन पर कब्जा कर खेती करना बताया है।   


सूत्रों के मुताबिक महू - मानपुर में ज्यादातर ग्रामीणों ने 2012-14 के बाद जंगल में अतिक्रमण कर रखा है। उन्हें हटाने में वन विभाग बेबस है, क्योंकि कार्रवाई के दौरान ग्रामीण महिलाओं को आगे कर देते हैं। इससे वनकर्मी  अतिक्रमण हटाए बिना ही वापस आ जाते है! 


पिछले महीने पीसीसीएफ राकेश श्रीवास्तव के निर्देश  पर टीम ने महू में अतिक्रमण को लेकर जांच की।  इसमें ग्राम बुजुर्ग, पीपल्या, मांगल्या, बड़िया, घोड़ाखुर्द, बड़ी जाम, छोटी जाम के वन क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा कब्जा किया जाना पाया गया! सूत्रों के मुताबिक इन गांव वालों ने भी वन अधिकार पत्र के तहत प्रशासन को पट्टे की जमीन के लिए आवेदन कर रहा है!


काफी दिनों से चल रहा है विवाद:


चोरल रेंज के रसकुडिया में चार महीने से वनकर्मियों और ग्रामीणों के बीच जमीन को लेकर विवाद हो रहा है। ग्रामीणों ने दो बार स्टाफ पर हमला भी किया है। इसके चलते स्टाफ ने रसकुडिया वनचौकी पर रात में रुकने से मना कर दिया था। 


अतिक्रमण के लिए सैकड़ों पेड़ भी काटे गए हैं।  तीन दिन पहले इंदौर रेंज के पठानपिपलिया में ग्रामीणों ने तीन हेक्टेयर जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन वन विभाग को समय पर अतिक्रमण करने की जानकारी मिल गई।  इसके बाद स्टाफ ने ग्रामीणों को बेदखल कर जमीन पर पौधे लगा दिए।  


वन अफसरों का कहना है, कि वन अधिकार के तहत पट्टे की जमीन के लिए आवेदन आए हैं, मगर प्रत्येक जमीन का सत्यापन करना थोड़ा मुश्किल है, इसके लिए ग्रामीणों से सारे प्रमाण मांगे जा रहे हैं, आवेदनों की स्क्रूटनी के बाद जमीन देने की प्रक्रिया होगी!


       " सच्चाई का सेंसेक्स,,,
जब
वनरक्षक ही अपनी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे तो जंगलों की सुरक्षा कैसे हो पाएगी! वन विभाग को आखिर इतना कमजोर किसने बना रखा है!  कोई भी सरकार हो हर सरकार में जंगल को बचाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करी गई है कागजों पर योजनाएं भी बनी है!


फिर सवाल यह है कि आखिर जंगल कम क्यों हो रहे हैं! जबकि सच तो यह है की इन्हीं सरकारों में इन्हीं के छूट भैया नेताओ की मदद से जंगलों को निघला जा रहा


वनरक्षक तो ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते हैं!  लेकिन उनके अधिकारियों पर दबाव और प्रभाव किसका रहता है, यह भी किसी से छुपा नहीं है! दबाव और प्रभाव का असर इतना गहरा होता है कि वह कभी-कभी अपने वनरक्षक की रक्षा करने में भी असमर्थ होते हैं! 


सूत्रों की माने तो अपने विभाग के अलावा भी वनरक्षक के ऊपर, अवैध कटाई करने वाले ग्रामीण जो महिलाओं को आगे करते हैं, लकड़ी माफिया, छुट भैया नेताओं, का काफी दबाव रहता है! इतने दबाव में वनरक्षक अपनी ड्यूटी करता है, आखिर वह कहां-कहां किस-किस से बचेगा! इन्हीं के बीच रहना है! और जंगल भी इन्हीं से बचाना है! 


कभी अवैध कटाई को लेकर कोई दुर्घटना हो जाए! यह वनरक्षक पर हमला हो जाए तो उनको पुलिस रिपोर्ट करवाने में भी पसीने आ जाते हैं , उल्टा पुलिस रिपोर्ट का खतरा वनरक्षक के ऊपर भी होता है! क्योंकि अवैध कटाई करने वाले ग्रामीण महिलाओं को आगे कर देते हैं,


यह वही जंगल है, जहां सिमी के गुर्गे सफदर नागौरी ने 2008 में चोरल के जंगल में पीथमपुर के कमरुद्दीन के खेत में सिमी के लिए चार ट्रेनिंग कैम्प लगाए थे। इसके बाद ही इंदौर में नागौरी समेत सिमी गुर्गों को पकड़ा गया था।... जाच तो इस बात की भी होना चाहिए, कमरुद्दीन का खेत चोरल के जंगल में कहां से आया, कहीं यह भी तो जंगल माफियाओ का कोई बड़ा गठजोड़ तो नहीं है!  


अब आप समझ लीजिए कि किन मुश्किल परिस्थितियों में वनरक्षक अपनी ड्यूटी करता है!  ऐसे में वह वनकर्मी खुद को बचाएगा या जंगल बचाएगा!


एक यहीं बड़ा कारण है कि सभी सरकारों में जंगल का रकबा कम ही हुआ है! एक तरफ तो वन की जमीन, कम होती गई वहीं वनरक्षक का हौसला भी कम होता गया! 


  सरकारो की अनदेखी बड़े नेताओं की सरपरस्ती अब जंगलों पर भारी पड़ने लगी है, छुट भैया नेता से लेकर जंगल माफिया तक ने सैकड़ों एकड़ के जंगल काटकर खेती कि जमीने तैयार कर ली है!


आदिवासी नेताओं और उनके रिश्तेदारों की जमीन अगर खगाली जाएं ,और उसका पुराना रिकॉर्ड निकाला जाए,तो समझ में आ जाएगा की जिस अंधाधुन गति से जंगल कटे हैं, वह जमीने कहां गई!


क्योंकि राजस्व गांव तो आज भी गिनती के ही है! तो जंगल का रकबा क्यों घटा! सरकारों को जंगलो की सुरक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए, जंगल माफियो से  सख्ती से निपटना चाहिए!


वनरक्षक जो रात दिन जंगल कि ड्यूटी करते हैं, उनकी सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम करना चाहिए! क्योंकि आज जो भी जंगल बचा है,  वह इन्हीं की वजह से है! 


वरना वह दिन दूर नहीं जब  बच्चों को कहना पड़ेगा ,,,एक था जंगल,,,


Featured Post

आग से राख टाटा के सपने,, कहानी दर्द,, कहानी गोपाल की

वैसे तो आप अगर अपने विकराल रूप पर आ जाए तो सब कुछ बर्बाद कर देती है। लेकिन वह खुद नहीं करती किसी न किसी कारण से या किसी की लापरवाही से वह अ...