मनुष्य जीवन में गुरु की महत्वता ,और गुरु - शिष्य के बीच की दीवार शिक्षा के ठेकेदार,,,

गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है। 


यदि व्यक्ति के मन में सच्ची लगन व श्रद्धा हो तो गुरु को किसी भी रूप में, कहीं भी पाया जा सकता है।   एकलव्य ने मिट्टी की प्रतिमा में ही गुरु का दर्शन पाया। 


दत्तात्रेय जी ने प्रकृति में चौबीस गुरुओं को खोजकर उनसे  मार्गदर्शन प्राप्त किया।  आम जनजीवन में प्राय: प्राथमिकता: माता - पिता और शिक्षक ही गुरु का उत्तरदायित्व  निभाते हुए अपने ज्ञान, विवेक, अनुभव व परिस्थितियों आकारो के आधार पर व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हैं।



गुरुशिष्य परंपरा पर राजा रवि वर्मा द्वारा 1904 में बनाया हुआ चित्र : शिष्यों के साथ आदि गुरु शंकराचार्य #साभारविकिपीडिया


भारतीय समुदाय ने प्राचीन काल में ही गुरु के महत्व को गहराई से समझा और गुरु को प्रतीक के रूप में सम्मानित करने के लिए महर्षि वेदव्यास जी की स्मृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा डाली महर्षि वेदव्यास जी ने चारों वेद संपादित कि उन्होंने अठारह पुराण और कुछ अन्य पवित्र ग्रंथ भी लिखें, यह सभी ग्रंथ भारतीय संस्कृति के आधार है, व मानव को देश - काल के अनुसार उचित अनुचित शुभ - अशुभ व धर्म - अधर्म का बोध कराते हुए उसके कर्तव्य पथ को अलौकिक करते हैं ! 


आधुनिक युग में औपचारिक शिक्षा का स्वरूप पूर्णरूपेण बन चुका है! आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य रोजगार परक बनाकर बेरोजगारी दूर करना और युवाओं को अधिक से अधिक धन अर्जित करने योग्य बनाना  आज के आधुनिक युग में गुरु और शिष्य के बीच में शिक्षा के ठेकेदारों ने एक दूरी सी बना दी है!


शिक्षा को व्यापार और शिक्षकों को कामगार बना दिया है,  तड़क भड़क से भरपूर चमचमाते महलों से अलीशान स्कूल तो है, लेकिन नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली उपयोगी शिक्षा से कोशो दूर है,  अर्थ के चक्र में शिक्षक मजबूर है, प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ है, लेकिन नैतिकता का पतन भी है, बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाकर , शिक्षक, शिष्य, पालक, सब का शोषण कर शिक्षा के ठेकेदार सिर्फ अपनी झोली भर रहे है! अच्छी शिक्षा के नाम पर महंगी फीस तो है, लेकिन संस्कारित, नैतिक और जीवन उपयोगी शिक्षा की भारी कमी है! जिसकी बानगी हम आए दिन समाचार पत्रों और मीडिया  चैनलों में देखते ही रहते है! 


इस पतन के लिए वह हम (पालक) भी उतने ही जिम्मेदार है, जो महंगी शिक्षा को प्रतिष्ठा का प्रतीक बना कर चलते हैं! और समाज में अन्य वर्ग के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं, तब ही तो मूल्यों का पतन होता है,और समाज में हीन भावनाएं उत्पन्न होती है, जिससे अपराध जन्म लेता है!  गुरु शिष्य परंपरा को जिंदा  रखने के लिए शिक्षा के ठेकेदारों की चुंगल से शिक्षा को आजाद कराने की जरूरत है,


इस युग में शिक्षा में सुधार की बहुत जरूरत है !  इस दौर में ऐसे गुरुओं की आवश्यकता है, जो नैतिक शिक्षा के महत्व को कम ना होने दें, साथ ही विज्ञान और नई तकनीक विकास के नए नए आयाम स्थापित कर  राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने में मदद करें!  इसके लिए योग्य गुरु की शिक्षाओं से मार्ग दर्शन प्राप्त करते हुए अंतरण को शुद्ध रखना अनिवार्य है! देश में अनेक संत महापुरुष हुए जिन्होंने अपने गुरु शिष्य परंपरा का अनुसरण कर आदर्श स्थापित करे है! इस संदर्भ में विभिन्न ग्रंथों के रूप में महर्षि वेद व्यास जी का योगदान मानव समाज के लिए अनुपम भेट है!


गुरुओं की शिक्षाएं और गुरु शिष्य परंपरा हमारे लिए अनमोल धरोहर है ! आज आवश्यकता है, इसे मूल स्वरूप में स्थापित करने की इस परंपरा को बचाए रखने की


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