सचिन पायलट तुमसे ना हो पाएगा! क्योंकि महाराज, महाराज होते हैं,,, और फिर अपमान की आग से निकली चिंगारी और सत्ता के लालच में फर्क होता है!
दोनों हाथों में लड्डू लेने की नाकाम कोशिश करते सचिन पायलट, शायद सचिन पायलट को यह गुमान हो गया था, की वह भी महाराज सिंधिया की तरह ही अपने राज्य राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिरा सकते है , लेकिन जनता की लड़ाई और सत्ता की लड़ाई का अंतर नहीं समझ पाए पायलट साहब,,,
वैसे राजस्थान सरकार हिलाने में कुछ हद तक सफल तो रहे, जो की आप के बस में था, वह किया भी लेकिन जो बस में नहीं था, वह नहीं कर पाए, बात तो तभी बनती ना जब वह, वह भी कर जाते जो बस में नहीं था!
सांच को आंच नहीं,अब यह साबित हो गया है,की "टायगर एक ही था"
जिनके पास ना ही कोई संगठन था। और ना ही कोई पद यहां तक कि वह अपना ग्वालियर का चुनाव भी हार चुके थे। फिर भी बिना किसी पद के निस्वार्थ सेवा में लीन थे! लेकिन वह उन विषैले नागों को कुचलने निकल पड़े थे, जो अपने विषैले फनो से महाराज को अपमानित कर रहे थे!
कर्ज माफी का दंश भी झेल जाते, शायद महाराज अपमान भी सह जाते, लेकिन जन मानस की पीड़ा ना सह पाए, जब उन्होंने जनता के दर्द की आवाज उठाई तो उलटा उन्हें ही रोड पर आने की धमकी दी गई, जब अपमान अपनी सीमाएं तोड़ चुका था, तब महाराज को रोड पर निकलना ही पड़ा , लेकिन उनके पीछे एक ऐसा "कारवां"था, जो अपने श्रीमंत के सम्मान के लिए कुछ भी करने को तैयार था! समूचा जनमानस उनके साथ था!
महाराज बनने की चाहत तो सभी की होती है। लेकिन पायलट साहब वह कारवां वह जनमानस कहां से लाओगे!
विरले ही होते हैं, राजनीति के ऐसे महाराज जिनके लिए इतना समर्पण होता है, वरना यहां तो गला काट प्रतिस्पर्धा है! लेकिन सचिन पायलट यह तुमसे ना हो पाएगा, वो कहते हैं ना,,, नियत साफ तो मंजिल आसान,, क्योंकि सत्ता के लालच और अपमान की चिंगारी में बड़ा फर्क होता है!
लेकिन आप सत्ता प्राप्ति के लालच में, उस सरकार को गिराने जा रहे थे, जिसके केबिनेट मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष आप खुद ही थे, पूरा संगठन आपके हाथ में था! फिर भी आप अपने लालच की पूर्ति नहीं कर पाए!
महाराज बनने के लिए वह भी करना पड़ता है, जो बस में नहीं हो, क्योंकि महाराज, #महाराज होते हैं!