संवेदनहीन समाज को तो हम दोष देते हैं! लेकिन इसकी असल वजह से हम अनभिज्ञ रहते हैं। समाज में संवेदनहीनता बढ़ने के पीछे बहुत बड़ा रोल हमारे खोखले तंत्र (सिस्टम) का होता है। जो संवेदनाओं को हतोत्साहित, और संवेदनहीनता को प्रोत्साहित करता है। उसी का एक छोटा सा उदाहरण है, हमारी कहानी के हीरो रेहड़ी पटरी वाले चिंटू की कहानी,,,
कहानी एक रेहड़ी पटरी वाले चिंटू की,,,
यह किस्सा है, एक मददगार को ही परेशान किए जाने का और अपने कर्तव्य से विमुख संवेदनहीन तंत्र के लालच का,,,
इंदौर/मंगलवार 15 सितंबर, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के बाहर रोड किनारे रेडी पटरी की दुकान लगाने वाले शक्स चिंटू राठौड़ रोज की भांति वह अपनी दुकान लगाए बैठा था। दोपहर के बाद का समय हो रहा था। ग्राहक की आस में चिंटू रोड की ओर देख रहा था। तभी वह क्या देखता है, कि दो लड़के बिना नंबर वाली गाड़ी से एक पैदल चल रहे गरीब राहगीर का मोबाइल छीन कर भाग रहे।
कोई कुछ समझ पाता है! उससे पहले आनन फानन में चिंटू ने अपनी दुकान की परवाह करे बगैर अपनी बाइक उन लुटेरों के पीछे लगा दी। अब मोबाइल लुटेरे बड़ी तेजी से आगे आगे भाग रहे थे। चिंटू उनका पीछा कर रहा था। लुटेरों ने आईटी पार्क चौराहे से बाय पास की तरफ अपनी गाड़ी दौड़ा दी। चिंटू भी तेजी से उनके पीछे लगा हुआ था।
लुटेरे पालदा चौराहा पार कर मुसाखेड़ी की तरफ तेजी से बड़ रहे थे! चिंटू भी बड़ी तेजी से उनके करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा था। मानो वह लुटेरों के इतना पास पहुंच चुका था। कि बस अब वह उन्हें पकड़ने ही वाला था। जैसे ही उसने लुटेरों को ललकार लुटेरों ने गाड़ी और तेज दौड़ा दी चिंटू भी पीछे था,उसकी पकड़ से लुटेरे अब बस कुछ ही दूरी पर थे। कि तब ही अचानक कहानी में क्लाइमैक्स आ जाता है!
हुआ यूं की मूसाखेड़ी पर चेकिंग चल रही थी। लेकिन लुटेरे तो भाग जाते हैं. और चिंटू को रोक लिया जाता है. अचानक मुसाखेड़ी चौराहे पर पुलिस वालों ने चिंटू की गाड़ी रोक ली और अपने पुलिसिया अंदाज में कागज पेपर की बात करने लगे, चिंटू उनसे कह रहा था. कि कागज पेपर में दिखा दूंगा पहले आप उन लुटेरों को पकड़ो यह किसी राह चलते गरीब का मोबाइल छीनकर भागे हुए है।में इनका पीछा कर रहा था।
लेकिन कर्तव्य से विमुख संवेदनहीन पुलिस वाले लुटेरों को पकड़ना तो दूर उल्टा चिंटू से ही पुलिसया अंदाज में बात करते हुए कागज पेपर मांगते रहे।
चिंटू उनसे बार-बार कहता रहा। की साहब मैं तो किसी की मदद ही कर रहा था।आप मुझे परेशान करने की बजाय वह काम कीजिए जो आपको करना चाहिए। लुटेरों को पकड़िए वरना ऐसे में कोई किसी की मदद भला कैसे करेगा। मैंने अपनी दुकान की परवाह करे बगैर अचानक इन लुटेरों के पीछे दौड़ लगाई है। क्योंकि यह लुटेरे किसी पैदल चलते गरीब राहगीर का मोबाइल छीनकर भागे है। आप उनको पकड़ने की बजाय मेरे पेपर के पीछे पड़े हो जो की दुकान पर है।
लेकिन साहब के पुलिसिया अंदाज को कोई फर्क नहीं पड़ा। सुनने में तो यह भी आया की चेकिंग पॉइंट पर कोई 2 स्टार वाले साहब भी बैठे हुए थे।
लेकिन रोड पर रेडी पटरी का काम करने वाला चिंटू भला बड़े साहब से शिकायत करने की हिम्मत कहां से जुटा पाता। लेकिन जिन पुलिस वालों से वह यह सारी बात कर रहा था। क्या उनकी संवेदनाएं बिल्कुल ही मर चुकी थी। या लालच ने उनको अंधा कर दिया था।
यह सोचने का विषय है!
थक हार कर चिंटू भी चढ़ावा कर चलता बना। कितना खोखला और कमजोर है हमारा तंत्र यह उसकी एक बानगी थी। जहां मदद करने वाले का प्रोत्साहन करने की बजाय उसे ही प्रताड़ित किया जाता है। चिंटू अब मनमसूक कर अपनी दुकान आ चुका था। लुटेरे भाग चुके थे, और पीड़ित के भी कोई पते नहीं थे। आसपास वालों ने उसकी दुकान का ध्यान रख लिया था। लेकिन मन ही मन चिंटू खोखले तंत्र की निर्बलता और संवेदनहीनता पर अपने आप को कोस रहा था। तरह तरह की भावनाए उसके मन में उछाल मार रही थी। खैर इस कहानी का अंत यही था। जैसा कि चिंटू और प्रत्यक्षदर्शिय ने बताया....
अब हमारी कहानी के हीरो चिंटू के विचारों को भटकाया जरूर जा सकता है। दस ज्ञान दिए जा सकते हैं। लेकिन सत्य को बदला नहीं जा सकता...शौर्य ध्वज....✍️